अपने पीछे काला सच लेकर बैठा है यह आइलैंड
दुनिया में कई चीज़ें हैं जिनके पीछे कुछ ना कुछ लॉजिक होता है ऐसे में आज हम एक ऐसे आइलैंड के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका इतिहास बहुत खौफनाक है. आइए जानते हैं. जी हम बात कर रहे हैं अंडमान के द्वीप की जो अपने खूबसूरत समुद्र तटों, क़ुदरती दिलकशी, अनछुए जंगलों, दुर्लभ समुद्री जीवों और मूंगे की चट्टानों के लिए मशहूर हैं. वहीं इस खूबसूरती के पीछे छुपा है एक काला इतिहास. जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. जी दरअसल यहां पर उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश राज के खंडहर, इस द्वीप और हिंदुस्तान के एक काले अध्याय के गवाह के तौर पर मौजूद हैं और रॉस आइलैंड में शानदार बंगलों, एक विशाल चर्च, बॉलरूम और एक कब्रिस्तान के खंडहर हैं, जिनकी हालत दिन-ब-दिन खराब हो रही है.
कहा जाता है साल 1857 में भारत की आजादी के पहले संग्राम के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने बागियों को अंडमान के सुदूर द्वीपों पर लाकर कैद रखने की योजना बनाई और उसके बाद साल 1858 में 200 बागियों को लेकर एक जहाज अंडमान पहुंचा. कहते हैं उस समय सारे के सारे द्वीप घने जंगलों से आबाद थे और इंसान के लिए वहां रहना मुश्किल था. उस समय केवल 0.3 वर्ग किलोमीटर के इलाके वाला रॉस आइलैंड इन कैदियों को रखने के लिए चुना गया पहला जजीरा था और इसका कारण यह था कि यहां पर पीने का पानी मौजूद था, लेकिन इस द्वीप के जंगलों को साफ करके इंसानों के रहने लायक बनाने की जिम्मेदारी उन्हीं कैदियों के कंधों पर आई.
इस दौरान ब्रिटिश अधिकारी जहाज पर ही रह रहे थे. उसके बाद धीरे-धीरे अंग्रेजों ने अंडमान में और राजनैतिक कैदियों को लाकर रखना शुरू कर दिया और जेलें और बैरकें बनाने की जरूरत पड़ी. वहीं उसके बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने रॉस आइलैंड को अंडमान का प्रशासनिक मुख्यालय बनाने की ठानी और बड़े अफसरों और उनके परिवारों के रहने के लिए रॉस आइलैंड को काफी विकसित किया गया. उसके बाद साल 1947 में भारत आजाद हुआ तो अंडमान निकोबार भी इसका हिस्सा बने और एक बार फिर भारतीय नौसेना ने इस द्वीप पर कब्जा कर लिया. इस तरह यह आइलैंड काले और घिनौने इतिहास का गवाह बना.
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