इस गृह पर होती है हीरे की बारिश
आप सभी जानते ही होंगे हमारे सौर मंडल में चार ग्रह ऐसे हैं, जिन्हें 'गैस दानव' कहा जाता है, क्योंकि वहां मिटटी-पत्थर के बजाय अधिकतर गैस हैं और इनका आकार बहुत ही विशाल है. ऐसे में वरुण (नेपच्यून) भी इन्हीं ग्रहों में से एक माना जाता है और बाकी तीन बृहस्पति, शनि और अरुण (युरेनस) हैं. ऐसे में वरुण धरती से सबसे ज्यादा दूर है और खतरनाक भी, क्योंकि वहां का तापमान शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस नीचे रहता है और ऐसे में इंसान ऐसा जम जाएगा कि फिर वो किसी पत्थर की तरह टूट सकता है. जी हाँ, कहा जाता है वरुण हमारे सौरमंडल का पहला ऐसा ग्रह था, जिसके अस्तित्व की भविष्यवाणी उसे बिना कभी देखे ही गणित के अध्ययन से की गयी थी और फिर उसे उसी आधार पर खोजा गया.
कहा जाता है वरुण को पहली बार 23 सितंबर, 1846 को दूरबीन से देखा गया था और इसका नाम नेपच्यून रख दिया गया और नेपच्यून प्राचीन रोमन धर्म में समुद्र के देवता थे. ऐसे में भारत में वरुण का स्थान देवता का रहा है, इसलिए इस ग्रह को हिंदी में वरुण कहा जाता है.
वहीं रोमन धर्म में नेपच्यून देवता के हाथ में त्रिशूल होता था, इसलिए वरुण का खगोलशास्त्रिय चिन्ह ♆ ही है और वरुण ग्रह पर जमी हुई मीथेन गैस के बादल उड़ते हैं और यहां हवाओं की रफ्तार सौरमंडल के दूसरे किसी भी ग्रह से काफी ज्यादा है. कहा जाता है यहां मीथेन की सुपरसोनिक हवाओं को रोकने के लिए कुछ भी नहीं है, इसलिए उनकी रफ्तार 1,500 मील प्रति घंटे तक पहुंच सकती है और वरुण के वायुमंडल में संघनित कार्बन होने के कारण वहां हीरे की बारिश होती है. वहीं अगर इंसान कभी इस ग्रह पर पहुंच भी जाए तो इन हीरों को नहीं ले सकता क्योंकि यहाँ बहुत ठंड रहती है.
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