इन्दौरी तड़का : बावा क्या सच्ची में मरने वाले लोग श्राद्ध में नीचे खाना खाने आते है
हाँ भिया मेको तो नी लगता की ये सब सच है। ऐसा बोलते है ना की जब श्राद्ध होती है, तो मरने वाले नीचे आते है। बड़े कसम से अगर ये सब सच होता है तो पता नी लोगो की कैसे बैंड बजती होगी। भिया आजकल वैसे भी श्राद्ध चल रिए है। सबके घर में जो मर गए होंगे वो इन दिनों खाना खाने आएँगे सबके घर में उन्ही की पसंद का खाना बनाएंगे और लपक के ब्राम्हणो को भोजन करवाएंगे।
भिया अब अपन सबी जानते है की श्राद्ध 15 दिन का होता है और इन 15 दिनों में लपक के डर डर के रेना पड़ता है क्योंकि बड़े लोग नीचे खाना खाने आते है, और रेते तो वो लोग भुत ही है ना। अब उनसे डर नई लगेगा तो क्या होगा। बड़े श्राद्ध का समय ऐसा होता है की सारे के सारे मरे हुए लोग नीचे आते रेते है ये 15 दिन सभी के लिए डरावने होते है जिनको डर लगता है। भिया लेकिन मेरेको तो इस बात पे बिल्कुल बी भरोसा नी है की ऐसा कुछ होता बी होगा।
बड़े लेकिन इंदौर में रेने वाले लोग तो इस पर यकीन करेंगे ही ना क्योंकि वो तो वैसे बी अंधविश्वासी है उनको अभी चोटी काटने वाली चुड़ैल पर विशवास हो गया तो ये तो ऐसी बात है जिस पर इंदौर के लोगों को झट से विशवास हो जाएगा। भिया क्या बोलो अब यहाँ पे ऐसा ही मामला होता है यहाँ के लोगो को झट से कोई बी अंधविश्वास पे विशवास हो जाता है। भिया मेरेको सम्पट नी पड़ता है की ये सब करते कायको है फ़ालतू की मगजमारी है सब। खिलाना ही है तो जब वो नीचे रेते है तब खिलाओ ऊपर जाने के बाद वापस नीचे बुलाना कहाँ का कानून है भिया। बात तो गलत है पर रिवाज है अब उसे तो बदला नी जा सकता है।
इन्दौरी तड़का : ऐ जिंदगी तुझे भी टीचर्स डे मुबारक तूने बी भोत कुछ सिखाया है
इन्दौरी तड़का : बड़े कसम से अब तो ये ज़िंदगी झेला ही नी री है
इंदौरी तड़का : बड़े इंदौर के लोगो की ज़िंदगी में दिक्कत नी बल्कि दिक्कत में ज़िंदगी है