19 फरवरी को है नर्मदा जयंती, यहाँ जानिए कैसे हुई थी इस नदी की उतपत्ति

हर साला मनाया जाने वाला नर्मदा जयंती का पर्व इस साल भी मनाया जाने वाला है। यह पर्व इस साल 19 फरवरी को मनाया जाने वाला है। ऐसे में इस पर्व को मनाने से पहले हम आपको बताने जा रहे हैं माँ नर्मदा की कथा। जानिए कैसे हुई थी उनकी उतपत्ति।

नर्मदा नदी के जन्म व उदगम
एक बार देवताओं ने अंधकासुर नाम के राक्षस का विनाश किया। उस समय उस राक्षस का वध करते हुए देवताओं ने बहुत से पाप भी किये। जिसके चलते देवता, भगवान् विष्णु और ब्रम्हा जी सभी, भगवान शिव के पास गए। उस समय भगवान शिव आराधना में लीन थे। देवताओं ने उनसे अनुरोध किया कि – “हे प्रभु राक्षसों का वध करने के दौरान हमसे बहुत पाप हुए है, हमें उन पापों का नाश करने के लिए कोई मार्ग बताइए”। तब भगवान् शिव ने अपनी आँखें खोली और उनकी भौए से एक प्रकाशमय बिंदु पृथ्वी पर अमरकंटक के मैखल पर्वत पर गिरा जिससे एक कन्या ने जन्म लिया। वह बहुत ही रूपवान थी, इसलिए भगवान विष्णु और देवताओं ने उसका नाम नर्मदा रखा। इस तरह भगवान शिव द्वारा नर्मदा नदी को पापों के धोने के लिए उत्पन्न किया गया।

इसके अलावा उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर नर्मदा ने कई सालों तक भगवान् शिव की आराधना की, भगवान् शिव उनकी आराधना से प्रसन्न हुए तभी माँ नर्मदा ने उनसे ऐसे वरदान प्राप्त किये, जो किसी और नदियों के पास नहीं है। वे वरदान यह थे कि –“ मेरा नाश किसी भी प्रकार की परिस्थिति में न हो चाहे प्रलय भी क्यों न आ जाये, मैं पृथ्वी पर एक मात्र ऐसी नदी रहूँ जो पापों का नाश करे, मेरा हर एक पत्थर बिना किसी प्राण प्रतिष्ठा के पूजा जाये, मेरे तट पर सभी देव और देवताओं का निवास रहे” आदि। इस कारण नर्मदा नदी का कभी विनाश नही हुआ। कहा जाता है यह नदी सभी के पापों को हरने वाली नदी है। जी दरअसल इस नदी के पत्थरों को शिवलिंग के रूप में विराजमान किया जाता है, और इसका बहुत अधिक महत्व माना जाता है।
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