पढ़ने-पढ़ाने की चाह ने बना दिया बिजनेसमैन
![40 companies rejected sushant jha now he is running his own startup 40 companies rejected sushant jha now he is running his own startup](https://viral.newstracklive.com/uploads/november2017/XSdJUQ3NjN1511407833.jpeg)
आज इस खबर के माध्यम से बात करते हैं उस शख्स की जिसे करीब 40 कंपनियों में इंटरव्यू देने के बाद भी निराशा हाथ लगी. बात कर रहे हैं सुशांत झा की, जो साउथ दिल्ली में 'पढ़ेगा इंडिया' स्टार्टअप सफलता पूर्वक चला रहे हैं. यह स्टार्टअप सेकेंड हैंड किताबों का है जिसे उन्होंने अपने फ्लैट से शुरू किया था जो आज अच्छा खासा हो गया है. सुशांत बेहद कम दामों में किताबें स्टूडेंट्स को मुहैया कराते हैं. सुशांत ने यह कदम तब उठाया जब उन्हें मैकेनिकल इंजीनियरिंग और एमबीए करने के बाद निराशा हाथ लगी. उनका ऊपरी होंठ हल्का सा कटा हुआ है, जिसकी वजह से साफ बोल पाने में दिक्कत होती है, इसी वजह से इंटरव्यू लेने वाले उनकी बात पूरी सुने बिना ही उन्हें जाने को कह देते थे.
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करीब दो साल तक इस लड़ाई को लड़ते-लड़ते वो थक गए थे और एक दिन उन्होंने अपने भाई से कुछ नया करने की चर्चा की. उन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद किया जब सोसायटी के गरीब बच्चों के लिए गर्मियों की छुट्टियों में किताबों की लाइब्रेरी खोल देते थे. फिर क्या था, सुशांत ने 2014 में ‘बोधि ट्री नॉलेज सर्विसेज एंड इनिशिएटिव पढ़ेगा इंडिया’ नाम से अपनी कंपनी रजिस्टर करवा ली.
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सुशांत का स्टार्टअप अब दिल्ली के साथ-साथ देश भर में काम करना चाहता है. इस काम के पीछे उनका मानना है कि एक तो पढ़ने वालों को महंगी किताबें सस्ते में मिल जाती हैं, दूसरा- इससे कागज की बचत होती.
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कागज बचता है तो पेड़ कटने से बचते हैं. यानी लोगों का भी फायदा और पर्यावरण का भी फायदा. शुरू में भाई के साथ वह खुद लोगों और वेंडरों से संपर्क करते थे.
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किताबों की डिलीवरी भी सुशांत खुद करते थे ताकि कंपनी की पहचान बने. खास बात यह भी थी कि जब ग्राहक किताब से पूरी तरह संतुष्ट होता था तभी उसकी कीमत अदा करता था.