1 रुपये का सिक्का बनाने में 1.2 रुपये खर्च होते हैं, तो आखिर क्यों घाटे का सौदा करती है सरकार
भारतीय करेंसी नोटों और सिक्कों का इतिहास पुराना और गहरा है। हालाँकि आपको शायद ही पता होगा कि भारत सरकार को हर साल करेंसी नोट और सिक्के छापने के लिए भी बहुत सारा पैसा खर्च करना पड़ता है. जी हाँ और इस दौरान को सिक्कों को बनाने के लिए सरकार को घाटे का सौदा तक करना पड़ता है. यानी ये कि भारत सरकार को हर सिक्के को बनाने में उनकी क़ीमत से ज़्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है. उदहारण के तौर पर भारत सरकार को 1 रुपये का सिक्का बनाने में 1.2 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. घाटे के बावजूद सरकार हर साल लाखों सिक्के जारी करती है.
जी दरअसल, भारत में किसी भी नोट को बनाने के लिए उसमें बहुत सारे सिक्योरिटी फ़ीचर्स डाले जाते हैं. ऐसे में इनमें ख़ास तरह का कागज, सिक्योरिटी लाइन, आरबीआई गवर्नर के सिग्नेचर और गांधी जी की फोटो आदि शामिल हैं. वैसे नोट कागज का बनता है तो ऐसे में इसको बनाने में सरकार को ज़्यादा खर्च उठाना नहीं पड़ता.
हालाँकि सिक्कों को बनाने की प्रक्रिया थोड़ी अलग है. आपको बता दें कि भारत सरकार को 1 रुपये का सिक्के को बनाने में 1.2 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. जी दरअसल, 1 रुपये के सिक्के को बनाने के पीछे की असल वजह महंगाई को कंट्रोल करना है, ये महंगाई को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाता है. जी हाँ और अगर मिनिमम सिक्के की वैल्यू 2 रुपये हो जाएगी तो कोई भी चीज़ महंगी होने पर सीधे 2 रुपये, 4 रुपये, 6 रुपये की संख्या में बढ़ेगी तो यही कारण है कि सरकार को छोटी क़ीमत वाली करेंसी सर्कुलेशन में रखनी ही पड़ती है.
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