इन्दौरी तड़का : बड़े कसम से अब तो ये ज़िंदगी झेला ही नी री है
हाँ भिया इस ज़िंदगी ने तो ऐसे एल लगाए है की क्या बोलू। मतलब हद हो गई है अब तो ऐसा मना कर रिया है की कहीं फॉरेन-वारेन शिफ्ट हो जाओ और मजे से ऐश कर लू। भिया कसम से ज़िंदगी एक तो वैसे ही बोरिंग पड़ी है ऊपर से और दस नए नए लफड़े आ जाते है ज़िंदगी में। कुछ झेला ही नी रिया है। सब बारा बजी पड़ी है। ऐसी की तैसी हो रखी है भिया यार। कसम से ज़िंदगी में इत्ते दुःख हो रखे है की सम्पट ही नी पड़ता है की दुःख में ज़िंदगी है या ज़िंदगी में दुःख है।
सब जगे से कुआ और खाई वाली फीलिंग आती है ऐसा लगता है की कहीं बी जाओ मरना तो तय है। बावा ये ज़िंदगी अब झेला ही नी री है। सब कुछ उलट पुलट हो रखा है कुछ बचा ही नी है सब बेकार सा होता जा रिया है। बड़े कसम से लगी पड़ी है सब जगे से। कहीं बी जम नी रिया है ज़िंदगी ने लपक ले रखी है सब जगे से। ना आर कर री ना पार कर री है बस लिए ही जा री है। बड़े वैसे बी कुछ बचा तो है नी इस ज़िंदगी में सब बस बुरा ही बुरा है।
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