इन्दौरी तड़का : फिर बड़े आज तो रंगों से मजे होंगे 56 पे
इन्दौरी तड़का : हाँ बड़े आज तो सबी लोग 56 पे सूतेंगे नी बल्कि पोतेंगे। आज तो ऐसे रंग जम रिया है की क्या बतउ। बस 56 ही नई भिया यहाँ की गलियों में बी लोग ऐसे होली खेल रे है की क्या बतउ। साला सूबे से लोग ऐसे टूट पड़ रिए है एक दूसरे पे जैसे पेली बार होली खेलने को मिल री हो। जो आ रिया है उसको बी नी छोड़ रिए है, जो काम से कहीं जा रिया है उसको बी नी छोड़ रिए है। जिसको देखो सबी एक दूजे को पोत पोत के जा रिए है। भिया यहाँ पे लोग सूबे से ऐसे बांदरे बन गए है की कुछ समझ में ही नी आ रिया है की कौन कौन है। मैंने मेरे घर से बस बाहर झाँका ही था की सामने से एक ने गुब्बारा फेंक दिया मुँह पे, सला सारे मुँह की बारा बज गई। भैया यहाँ पे लोग ठंडाई पिए जा रिए है और नाचे जा रिए है, कोई गम नी है आज एक दिन इन सबको।
ये इंदौर की होली तो सच में भोत भेतरीन होती है। लोगो को यहाँ पे कुछ नी मिलता तो लपक के कीचड़ में ही पटक मारते है और फिर बी पेट नी भरता तो अपने इंदौर में भोत नाले है पटक आते है। आम रस तो ऐसे खेलते है जैसे बाप का माल हो। भोत होली चढ़ री है भिया आज तो इन सबको। मेरेको तो यहाँ पे बाहर निकलने में ही मरी आ री है और यहाँ के लोगो को देखो तुम।
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