इन्दौरी तड़का : बड़े अब तो ट्रेन खचाखच भरी होएगी
हाँ बड़े अब तो सब नानी के यहाँ दादी के यहाँ जा रिए होंगे एक महीना ही रे गया है गर्मियों का फिर तो सारी छुट्टियां खत्म हो जाएंगी कोई जा ही नी पाएगा। और अभी तुम जाके एक बार ट्रैन का नजारा देख लो कसम से के रे है मजा ही आ जाएगा। ऐसी लपक के भरी होएगी की मन ही नी करेगा जाने का कहीं पे बी। बड़े ऐसी खचाखच भरी होएगी ट्रैन की मन करेगा घर लौट के आ जाओ कहीं जाओ ही ना। लेकिन फिर बी लोग मानते थोड़ी है जाते जरूर है। और ऊपर से भन्नाट वाली गर्मी है पन सुनते कहाँ है ये अपने इंदौर वाले इनको तो जाना है तो मतलब जाना है फिर तो यमराज बी आके इनको के दे की रुक जाओ तो ये कोई रुकने वाले थोड़ी है।
भिया ट्रैन चलती है तो मजे ही मजे लेकिन जैसे ही किसी स्टेशन पे रुकी साड़ी की साड़ी हेकड़ी निकल जाती है इत्ती गर्मी लगती है की ट्रैन से उत्तर के कहीं भग जाओ। बड़े लड़को को तो ट्रैन में एक अच्छी सी सीट चाहिए होती है और बगल में एक खूसबूरत सी लड़की फिर तो गर्मी हो या ठंडी सब कट ही जाती है। और एक लड़की को ट्रैन में अच्छी सी सीट और एक डेशिंग सा छोरा साइड वाली सीट पे जिसके सामने वो अपने एक्शन दिखा सके। बाकी बची फैमिली तो उनको तो बस सीट से मतलब होता है बाकी दुनिया गई भाड़ में। बड़े अपने इंदौरियों को यहीं चाहिए होता है ट्रैन एक सफर में।
इन्दौरी तड़का : भिया पेले ज़िंदगी में दिक्क़ते थी अब दिक्क्तों में ज़िंदगी रे गई है
इन्दौरी तड़का : नी भिया इत्ती गर्मी में तो कहीं नी जवाएगा