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यहाँ पानी की बूंदें करती हैं भोलेनाथ का अभिषेक

sawan 2019 know about mnasar baba temple in hamirpur

दुनियाभर में कई मंदिर हैं जो बहुत प्रसिद्ध हैं और हैरान कर देने वाले तथ्य से जुड़े भी हैं. ऐसे में एक शताब्दी पूर्व कारीमाटी एवं सौखर के बीच बेतवा के बीहड़ों में मिले पाताली शिवलिंग की सभी पूजा करते हैं और यहाँ की गई पूजा को सफल माना जाता है. कहते हैं सावन मास में वर्षा की कुदरती बूंदों से इनका स्वत: ही जलाभिषेक हो जाता है, क्योंकि इनके विशाल मंदिर के गुंबद में छत ही नहीं है. जी हाँ, हम जानते हैं यह सुनकर अप हैरान रह गए होंगे लेकिन यह सच है. जनपद में तीन शिव मंदिरों का प्रमुख स्थान है और मुख्यालय के सिंहमहेश्वर मंदिर, सरीला के शल्लेशवर महादेव के साथ ही कारीमाटी-सौंखर के बीहड़ों में विराजमान मनासर बाबा शिव मंदिर को प्रमुख शिव मंदिरों में गिनते हैं. वहीं ऐसी मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति शिवरात्रि को गंगा स्नान के बाद इन तीनों शिवलिंगों के साथ फतेहपुर के बहुआ क्षेत्र में गंगा किनारे स्थापित शिवलिंग में गंगाजल अर्पित कर दे तो अक्षय पुण्य का भागीदार हो जाता है. आइए जानते हैं इसकी अद्भुत है कहानी.

अद्भुत है कहानी - मनासर बाबा के शिवलिंग की अद्भुत कहानी है और सौ वर्ष पूर्व कारीमाटी एवं सौंखर के बीच बेतवा के बीहड़ों में घना जंगल था. दिन में कुछ चरवाहे ही जंगलों के आसपास जाते थे. इसके अलावा यहां कोई नहीं आता जाता था. कस्बे के एक सेठ की गाय को सिमनौड़ी गांव का एक ग्वाला चराने ले जाता था. यह गाय जंगल में घुसकर एक स्थान पर अपना सारा दूध निकाल देती थी. शाम को जब गाय सेठ को दूध नहीं देती तो वह ग्वाले पर नाराज होता था. सेठ की नाराजगी से सहमे ग्वाले ने एक दिन गाय की निगरानी करने का निर्णय लिया. गाय के जंगल में पहुंचने पर यह गाय के पीछे ही लगा रहा. उसने घने जंगल में देखा की गाय एक झाड़ी के पास खड़े होकर दूध स्वत: ही निकाल रही है. यह दृश्य देखकर ग्वाला चकित रह गया और उसने सारा वाक्या सेठ को बताया. 

इसके बाद सेठ ने मन ही मन उस स्थान को देखने का फैसला किया. उसी रात सेठ को सपना आया कि यहां पाताली शिवलिंग है. सेठ सुबह ग्वाले के साथ उस निर्जन स्थान पर गया. जहां गाय स्वत: दूध निकाल देती थी. सेठ ने उस स्थान को खुदवाने की जिम्मेदारी सिमनौड़ी गांव के रामलाल अरख को दी. यहां पर खुदाई शुरू होते ही शिवलिंग नजर आया. शिवलिंग दिखते ही सेठ ने खुदवाकर घर ले जाने का निर्णय किया. कई दिन हुई खुदाई के बाद शिवलिंग का अंत नहीं मिला और गड्ढा करीब तीस फिर गहरा हो गया. तभी सेठ को फिर सपना आया कि वह पाताली शिवलिंग है इसका कोई अंत नहीं है. इसको यही रहने दिया जाए. तब खुदाई बंद कराकर इसके आसपास चबूतरा बनाया गया और लोग पूजन-अर्चन करने लगे. 

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