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आखिर क्यों दशहरे के दिन मनाई जाती है सिंदूर खेला की रस्म?

What Is Sindoor Khela History

नवरात्रि का पर्व चल रहा है और बंगाल में इस पर्व का खास महत्व है। बंगाल में नवरात्रि के पर्व के खत्म होने के बाद दशहरा के दिन सिंदूर खेला जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर क्यों खेला जाता है सिंदूर? आज हम आपको इसके पीछे का लॉजिक बताते हैं। 

दशहरे के दिन मनाते हैं सिंदूर खेला की रस्म- जी दरअसल हिंदू धर्म में नवरात्रि और दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है। इस दौरान देशभर में बड़ी धूमधाम रहती है और इसे मनाया जाता है। 

जी दरअसल इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण वजह छिपी हुई है। ऐसी मान्यता है कि दशहरे के दिन मां दुर्गा की धरती से विदाई होती है और इस उपलक्ष्य में सुहागने महिलाएं उन्हें सिंदूर अर्पित कर आशीर्वाद लेती हैं। 

इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि सिंदूर खेला के दिन पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाकर महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं। जी हाँ और उसके बाद मां को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है। इसी के साथ सिंदूर खेला के दिन बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को खुश करने के लिए वहां पारंपरिक धुनुची नृत्य करती हैं।

दूसरी तरफ सिंदूर खेला के पीछे एक धार्मिक म​हत्व भी है। जी दरअसल ऐसा कहा जाता है कि लगभग 450 साल पहले बंगाल में मां दुर्गा के विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का उत्सव मनाया गया था।उसी के बाद से लोगों में इस रस्म को लेकर काफी मान्यता है और हर साल पूरी धूमधाम से इस दिन का मनाया जाता है।

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