आखिर क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वा का पर्व, जानिए लॉजिक
हर साल मनाया जाने वाला गुड़ी पड़वा का पर्व इस साल 2 अप्रैल को मनाया जाने वाला है। जी दरअसल हिन्दू नववर्ष (Hindu New Year) के आरंभ की खुशी में हर साल चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) का पर्व मनाया जाता है। अब हम आपको बताते हैं इसे मनाने के पीछे का लॉजिक। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि इस दिन इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, संसार में सूर्य पहली बार उदित हुए थे। इसलिए गुड़ी पड़वा को संसार का पहला दिन भी माना जाता है। केवल यही नहीं बल्कि इसी दिन से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की भी शुरुआत होती है।
ऐसा माना जाता है कि त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने इसी दिन बालि का वध करके लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी, इस खुशी में लोगों ने जश्न मनाया था, रंगोली बनाई थी और विजय पताका फहराया था। जी हाँ और इसी विजय पताका को गुड़ी कहा जाता है। आप सभी को बता दें कि महाराष्ट्र में इस त्योहार को गुड़ी पड़वा, कर्नाटक में युगादि और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादी के नाम से मनाया जाता है। दूसरी तरफ गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वो के नाम से मनाते हैं। जी हाँ और आज भी इस त्योहार पर गुड़ी लगाने की प्रथा कायम है।
गुड़ी पड़वा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्रभु श्रीराम के समय में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन था। जब भगवान श्रीराम माता सीता की को रावण से मुक्त कराने के लिए लंका की तरफ जा रहे थे, तो दक्षिण भारत में पहुंचकर उनकी सुग्रीव से मुलाकात हुई। सुग्रीव बालि का भाई था। सुग्रीव ने श्रीराम को अपने साथ हुई नाइंसाफी और बालि के कुशासन और आतंक के बारे में बताया। इसके बाद भगवान श्रीराम ने बालि का वध लोगों को उसके आतंक से मुक्त कराया। वो दिन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन था। इसके बाद दक्षिण भारत के लोगों ने खुशी में विजय पताका फहराया और घरों में रंगोली बनाकर जश्न मनाया। उसी के बाद से आज भी दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी यानी विजय पताका फहराया जाता है और इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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