पर्यावरण को सुरक्षित बनाये, लकड़ी की नहीं कंडों की जलाएं होली
होली आने वाली है और ऐसे में हर जगह होलिका दहन की तैयारी शुरू हो गयी है। हर गली और हर मोहल्ले में होलिका दहन किया जाता है वहीँ दूसरे दिन इसे रंगों से खेला भी जाता है। ऐसे में हमे होली पर अपनी स्किन और पर्यावरण का भी ख्याल रखना पड़ता है। जी हाँ, होली पर अक्सर हम लकड़ियों को इकठ्ठा कर उसे जलाया जाता है जलाने के पहले उसकी पूजा भी की जाती है। होलिका दहन की कथा तो आप सभी जानते होंगे कि क्यों मनाई जाती है और कैसे मनाई जाती है। फ़िलहाल हम यहाँ बात कर रहे हैं होलिका दहन की जिसमे लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है।
कुछ समितियां ऐसी रहती हैं जो लकड़ियों की होली जलाते हैं और वही लकड़ियां तो या तीन दिन तक जलती रहती है। जिससे पर्यावरण कहीं ना कहीं प्रभावित होता ही है। पर्यावरण को काफी प्रभाव पड़ता है जिसके चलते कुछ लोग इस पर नया विचार कर रहे हैं। और वो विचार है कि इस बार लकड़ी जलाने के बजाये कंडों ही होली जलाए।
ताकि वो जल्दी से जल भी जाए और पर्यावरण को ज्यादा हानि भी ना हो। शास्त्रों में भी होली दहन को कंडों को ही मान्यता दी है। कहा गया है कि होलिका दहन में लकड़ियों का उपयोग नही किया जाता है। जो पिछले कई सालों से होलिका दहन करते आ रहे हैं उनमे से कई लोग इस निर्णय को सही भी मान रहे हैं।
तो हमे भी जितना हो सके अपने पर्यावरण को बचाने की कोशिश करना चाहिए। तो इस बार आप भी लकड़ी से होलिका दहन करने के बजाये कंडों से होलिका दहन करें जिससे आप भी स्वस्थ रहेंगे और शहर भी।