क्या आप जानते हैं चंद्र देव का जन्म का लॉजिक
पुराणों में कई ऐसी कहानिया और कथाएं हैं जो आपने सुनी और पढ़ी होंगी. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं चंद्र देव का जन्म कैसे हुआ था और इसके पीछे क्या लॉजिक है. आइए जानते हैं.
कहा जाता है मत्स्य और अग्नि पुराण के अनुसार ''जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का विचार किया तब सबसे पहले उन्होंने अपने संकल्प से मानस पुत्रों की रचना की थी. वही उनमें से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि की शादी ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हो गई जिसे से दुर्वासा, दत्तात्रेय और सोम तीन बेटे हुए. वही सोम चंद्र का ही एक नाम माना जाता हैं जबकि पद्म पुराण में चंद्र के जन्म की दूसरी जानकारी दी गई हैं.
कहते हैं ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी. इसके बाद महर्षि अत्रि ने अनुत्तर नाम का तप शुरू किया. वही तप काल में एक दिन महर्षि की आंखों से जल की कुछ बूंदें टपक पड़ी जो बहुत ही प्रकाशमयी थी. दिशाओं ने स्त्री रूप में आ कर पुत्र प्राप्ति की कामना से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया जो उनके उदर के गर्भ रूप में स्थित हो गया. मगर उस प्रकाशमान गर्भ को दिशाएं धारण ना रख सकीं और त्याग दिया. उस त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा ने पुरुष रूप दिया जो चंद्रमा के नाम से प्रसिद्ध हुए और देवताओं व ऋषियों ने उनकी पूजा की उनके ही तेज से पृथ्वी पर दिव्य औषधियां उत्पन्न हुई.''
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