आखिर क्यों मनाते हैं करवाचौथ?
करवाचौथ का पर्व हर साल मनाया जाता है और इस आएल यह आज यानी 13 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं वह पौराणिक कथा जो यह बताती है कि आखिर क्यों मनाते हैं करवाचौथ?
क्यों मनाते हैं करवाचौथ
पौराणिक कथा के अनुसार, करवा नाम की पतिव्रता स्त्री थी। उनका पति एक दिन नदी में स्नान करने गया तो नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ा लिया। उसने अपनी पत्नी करवा को सहायता के लिए बुलाया करवा के सतीत्व में काफी बल था। नदी के तट पर अपने पति के पास पहुंचकर अपने तपोबल से उस मगरमच्छ को बांध दिया। फिर करवा मगरमच्छ को लेकर यमराज के पास पहुंची। यमराज ने करवा से पूछा कि हे देवी आप यहां क्या कर रही हैं और आप चाहती क्या हैं। करवा ने यमराज से कहा कि इस मगर ने मेरे पति के पैर को पकड़ लिया था इसलिए आप अपनी शक्ति से इसके मृत्युदंड दें और उसको नरक में ले जाएं।
यमराज ने करवा से कहा कि अभी इस मगर की आयु शेष हैं इसलिए वह समय से पहले मगर को मृत्यु नहीं दे सकते। इस पर करवा ने कहा कि अगर आप मगर को मारकर मेरे पति को चिरायु का वरदान नहीं देंगे तो मैं अपने तपोबल के माध्यम से आपको ही नष्ट कर दूंगी। करवा माता की बात सुनकर यमराज के पास खड़े चित्रगुप्त सोच में पड़ गए क्योंकि करवा के सतीत्व के कारण ना तो वह उसको शाप दे सकते थे और ना ही उसके वचन को अनदेखा कर सकते थे।
तब उन्होंने मगर को यमलोक भेज दिया और उसके पति को चिरायु का आशीर्वाद दे दिया। साथ ही चित्रगुप्त ने करवा को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा जीवन सुख-समृद्धि से भरपूर होगा। चित्रगुप्त ने कहा कि जिस तरह तुमने अपने तपोबल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की है, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैं वरदान देता हूं कि आज की तिथि के दिन जो भी महिला पूर्ण विश्वास के साथ तुम्हारा व्रत और पूजन करेगी, उसके सौभाग्य की रक्षा मैं करूंगा। उस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी होने के कारण करवा और चौथ मिलने से इसका नाम करवा चौथ पड़ा। इस तरह मां करवा पहली महिला हैं, जिन्होंने सुहाग की रक्षा के लिए न केवल व्रत किया बल्कि करवा चौथ की शुरुआत भी की। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने भी इस व्रत को किया था, जिसका उल्लेख वारह पुराण में मिलता है।
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