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इस वजह से शिव जी ने पीया था समुद्र मंथन का विष

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सावन का महीना सभी के लिए ख़ास माना जाता है लेकिन शिव भक्तों के लिए यह सबसे ख़ास होता है. इस महीने में शिव जी का पूजन किया जाता है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं समुद्र मंथन का विष शिव जी ने क्यों पिया था. आइए जानते हैं.

कथा

देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था. विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए. समुद्र मंथन का अर्थ है अपने मन को मथना, विचारों का मंथन करना. मन में असंख्य विचार और भावनाएं होती हैं, उन्हें मथ कर निकालना और अच्छे विचारों को अपनाना. हम जब अपने मन को मथेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार ही निकलेंगे. यही विष हैं, विष बुराइयों का प्रतीक है. शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया. उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. शिव का विष पीना हमें यह संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए. बुराइयों का हर कदम पर सामना करना चाहिए. शिव द्वारा विष पीना यह भी सीख देता है कि यदि कोई बुराई पैदा हो रही हो तो हम उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने दें.

जी हाँ, यही कहानी है जिसके कारण शिव जी ने विष पिया था और उसे अपने गले में धारण कर लिया था. कहा जाता है इस विष को पीने के बाद उनपर जल चढ़ाया गया था और उन्हें ठंडा किया गया था. इसी कारण सावन के महीने में उन्हें जल चढ़ाने का भी ख़ास विधान है.

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