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क्या आप जानते हैं एकदंत अवतार की कथा?

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गणेश चतुर्थी का पर्व चल रहा है और यह पर्व 22 अगस्त से शुरू हो चुका है. ऐसे में इस पर्व को हिन्दू धर्म के लोग बहुत धूम धाम से मनाते हैं. ऐसे में आप सभी ने गणेश जी से जुडी कई कहानियां सुनी होंगी जो बेहतरीन रही है. अब आज गणेश उत्सव के दौरान हम आपको बताने जा रहे हैं एकदंत अवतार की कथा. जी दरअसल एक बार युद्ध में एकदन्त ने मदासुर को परास्त किया था. उसके बाद उसे अपनी शरण में लेकर पाताल लोक में भेज दिया था. अब आइए बताते हैं एकदंत अवतार की संपूर्ण कथा. 

एकदंत अवतार की संपूर्ण कथा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक़ प्राचीन काल में च्यवन ऋषि का पुत्र मदासुर नाम का पराक्रमी दैत्य था. मदासुर ने एक बार अपने पिता से आज्ञा ली और वो दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास चला गया. उसने शुक्राचार्य के सामने पूरे ब्रह्माण्ड का स्वामी बनने की इच्छा व्यक्त की. शुक्राचार्य ने मदासुर को अपना शिष्य बना लिया. उसने मदासुर को एकाक्षरी मंत्र की विधि की दीक्षा दी. यह मंत्र शक्ति के लिए था. मदासुर ने शुक्राचार्य से दीक्षा प्राप्त की और वन की ओर चला गया. कई वर्षों तक उसने वहां तपस्या की. इस दौरान उसके शरीर पर चींटीयों और दीमक ने बांबीयां बना लीं. उसके चारों ओर घा जंगल उग गया. उसकी कठोर तपस्या को देखर मां आदि शक्ति प्रसन्न हो गईं. तपस्या से खुश होकर आदि शक्ति ने उसे पूरे ब्रह्माण का राजा होने का वर दिया. साथ ही निरोगी रहने का भी वर दिया. कहा जाता है मां आदि शक्ति से मिले इस वरदान के बाद उसने पूरे ब्रह्माण पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया. इसके बाद उसने देवताओं को भी पराजित कर दिया. स्वर्ग पर भी उसने कब्जा कर लिया. मदासुर का विवाह प्रमदासुर की कन्या से सम्पन्न हुआ. इनकी पत्नी का नाम सालसा है. इससे मदासुर को तीन पुत्र हुए. आखिरी में शिव जी को भी मदासुर ने पराजित कर दिया. हर तरफ असुरों का शासन था और धर्म-कर्म खत्म हो गया था. उस दौरान सभी देवगण इस परेशानी से निजात पाने के लिए सनत कुमार के पास गए. उन्होंने सनत कुमार से असुर का विनाश करने का उपाय पूछा. सनत कुमार ने सभी से एकदंत की उपासना करने की बात कही. सभी देवगणों ने एकदंत की सौ वर्षों तक उपासना की. इसके उपरान्त ही मूषक पर भगवान एकदन्त प्रकट हुए. सभी देवताओं ने उनसे मदासुर के प्रकोप से मुक्ति दिलाने की बात कही. 

एकदंत ने उन्हें मनोरथ का आशीर्वाद प्रदान किया. देवर्षि नारद ने मदासुर को इस बात की सूचना दे दी. अपनी विशाल सेना के साथ मदासुर अत्यन्त क्रोध में एकदंत से युद्ध करने निकल पड़ा. युद्ध में एकदंत ने असुरों से कहा कि अगर वह जीवित रहना चाहता है तो देवताओं से द्वेष छोड़ दे और उनका राज्य भी उन्हें लौटा दे. एकदंत ने कहा कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो वो उसका वध कर देंगे. इसके बाद भी ऐसा ना होने पर वे निश्चित ही स्वामी समेत उनका वध कर देंगे. लेकिन मदासुर नहीं माना. उसने युद्ध भूमि पर एकदंत को ललकारा. 

जैसे ही मदासुर ने अपने धनुष पर बाण चढ़ाने लगा तभी भगवान एकदन्त का तीव्र परशु उसे लगा. यह लगकर वह बेहोश हो गया. इसके बाद उसे समझ आ गया कि वह जीत नहीं सकता है. वे सर्वसमर्थ परमात्मा हैं. मदासुर ने हाथ जोड़कर एकदन्त की स्तुति की और क्षमा मांगी. साथ ही भक्ति और आशीर्वाद प्रदान करें. एकदन्त इससे प्रसन्न हो गए और मदासुर से कहा कि जहां उनकी पूजा हो रही हो वहां कभी न आए. यह आदेश सुनने के बाद वह पाताल में रहने चला गया.

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