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यहाँ भगवान शिव ने खोली थी अपनी तीसरी आँख, आज भी बहता है उबलता पानी

Larger Bathing Pool Near The Parking Stand Manikaran in Parvati Valley Hot Water Spring Sosan India

दुनियाभर में कई ऐसे मंदिर है जिनके बारे में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो अजीब तरह की होती है. ऐसे में एक ऐसा मंदिर भी है जहाँ क्रोधित होकर महादेव नेअपनी तीसरी आंख खोल दी थी और वहां आज भी अपने आप पानी खौलता है. जी हाँ, आज हम आपको उसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं. जी दरअसल वह जगह का नाम मणिकर्ण है और वह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू से 45 किलोमीटर की दूरी पर है. कहते हैं यह हिंदू और सिख धर्म के ऐतिहासिक धर्म स्थल हैं. ऐसा भी मानते हैं मणिकर्ण से पार्वती नदी बहती है जिसके एक तरफ है शिव मंदिर और दूसरी तरफ स्थित है गुरु नानक का ऐतिहासिक गुरुद्वारा. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि यहाँ आखिर क्यों भोले बाबा ने अपनी तीसरी आँख खोली थी. आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण..?
 

कहानी

कहानी के अनुसार यहां भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपना तीसरा नेत्र खोल दिया था. कहते हैं माता पार्वती के कान के आभूषण क्रीड़ा करते वक़्त पानी में गिर कर पाताल लोक पहुंच गए थे, जिसके बाद भगवान शिव ने अपने शिष्यों को मणि ढूंढने को कहा था. वहीं बहुत प्रयास करने के बावजूद मणि न मिलने पर क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी. कहते हैं तीसरी आंख खुलते ही नैना देवी प्रकट हुई और उस दिन से इस स्थान को नैना देवी का जन्म स्थान कहा जाने लगा. कहते हैं जब नैना देवी ने पाताल लोक में जाकर शेषनाग से मणि लौटाने के लिए कहा तो शेषनाग ने भगवान शिव को वह मणि भेंट स्वरुप अर्पित कर दी.

दूसरी कहानी

दूसरी कहानी के अनुसार बलिया वाराणसी रेलमार्ग पर चितबड़ागांव एवं ताजपुर डेहमा रेलवे स्टेशनों के बीच में स्थित है 'कामेश्वर धाम'. कहा जाता है इस जगह का वर्णन शिव पुराण मे किया गया है. ऐसे में यहाँ भगवान शिव ने देवताओं के सेनापति कामदेव को जला कर भस्म कर दिया था. कहते हैं यहां पर आज भी वह आधा जला हुआ हरा भरा आम का पेड़ मौजूद है, जिसके पीछे छिपकर कामदेव ने समाधि मे लीन भोले नाथ को जगाने के लिए पुष्प बाण चलाया था. यहाँ के लोगों का मानना है कि सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव अपने तांडव से पूरे संसार में हाहाकार मचा दिया था और देवताओं के समझाने पर भगवान शिव शांत होकर परम शांति के लिए समाधि में लीन हो गए थे. ऐसे में उस समय महाबली राक्षस तारकासुर ने भगवान ब्रह्मा को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र के हाथों ही हो. वहीं उस दौरान वरदान मिलने के बाद तारकासुर सृष्टि में उत्पात मचाने लगा था और वह स्वर्ग पर भी अधिकार जमाने की कोशिश करने लगा था. अंत में इस बात से चिंतित सभी देवगण ने समाधि में लीन भगवान शिव के समक्ष कामदेव को भेजने का निश्चय किया और इसके बाद कामदेव भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए आम के पेड़ के पत्तों के पीछे छिपकर शिवजी पर पुष्प बाण चला दिया. वहीं पुष्प बाण सीधे भगवान शिव के हृदय में  लगा और उनकी समाधि टूट गई. ऐसे में अपनी समाधि टूट जाने से भगवान शिव बहुत गुस्से में आ गए और उन्होंने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से जलाकर भस्म कर दिया. 

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