इस वजह से माँ कालका के पैरों के नीचे लेट गए थे भोलेनाथ
कहा जाता है मां दुर्गा के दस अवतारों में से एक हैं महाकाली का अवतार है, जिनके काले और डरावने रूप की उत्पति राक्षसों का नाश करने के लिए हुई थी. ऐसे में यह एक ऐसी शक्ति हैं जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है और इनका क्रोध इतना विकराल रूप ले लेता है कि संपूर्ण संसार की शक्तियां मिल कर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती. आज हम बताने जा रहे हैं माँ काली के गुस्से की वो कथा जब उन्हें शांत करने के लिए भोलेनाथ को उनके पैरों के नीचे लेटना पड़ा था.
कथा
शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार रक्तबीज नामक दैत्य ने कठोर तपस्या की. जिसके बाद उसे वरदान मिला कि उसके शरीर से खून की एक भी बूंद जब धरती पर गिरेगी तो उससे सैकड़ों दैत्य बन जाएंगे. रक्तबीज इस शक्ति के बल पर निर्दोषों को परेशान करना शुरू कर दिया. परिणाम स्वरूप तीनों लोकों पर उसका आतंक मच गया. इतना ही नहीं, रक्तबीज देवताओं को भी ललकारने लगा. जिसके बाद देवताओं और दानवों के बीच भयंकर लड़ाई हुई. देवताओं ने दानवों को हराने के लिए पूरी शक्ति लगा दी. रक्तबीज के शरीर से खून की एक बूंद जमीन पर गिरती तो देखते ही देखते सैकड़ों दैत्य पैदा हो जाते थे. ऐसे में रक्तबीज को हराना लगभग नामुमकिन हो गया था.
देवता लोग इस परेशानी को सुलझाने के लिए मां काली की शरण में गए.माता काली ने राक्षसों का वध करना शुरू कर दिया, लेकिन मां जब भी रक्तबीज के शरीर पर वार करती तो उसके खून से और भी राक्षस पैदा हो जाते. इसके लिए मां ने अपनी जीभ को बड़ा कर लिया. जिसके बाद रक्तबीज का रक्त जमीन पर गिरने की बजाय मां की जीभ पर गिरने लगी. क्रोध से उनके होंठ फड़कने लगे और आंखें बड़ी-बड़ी हो गई.महाकाली के विकराल रूप को देखकर सभी देवता परेशान हो गए, क्योंकि उन्हें शांत करना किसी के बस की बात नहीं थी. दानवों की लाशें बिछने लगी. मां को शांत करने के लिए सभी देव महादेव की शरण में पहुंच गए. भगवान शिव ने मां काली को शांत करने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी. तभी शिव जी उनके रास्ते में लेट गए और जब मां के पैर उन पर पड़े तो मां चौंक गईं. जिसके बाद उनका गुस्सा बिल्कुल शांत हो गया. लेकिन उन्हें इस बात पछतावा हुआ कि उन्होंने अपने पति के ऊपर पांव रख दिए.
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