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जब जाल में मछली की जगह फंस गई थी माता रानी की प्रतिमा, जानिए क्या हुआ?

Chhattisgarh Balod Maa Ganga Maiyya temple historical story on Navratri

आप सभी ने कई ऐसे किस्से सुने होंगे जिन्हे सुनने के बाद आपके मुंह से निकला होगा OMG! आज हम आपको एक ऐसे ही किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं। जी दरअसल यह किस्सा है छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में स्थित माता के अनोखे मंदिर का। यहाँ इस मंदिर की माता को भक्त गंगा मैय्या के नाम से जानते हैं। जी हाँ और इस मंदिर में देश भर से माता शक्ति की उपासना के लिए पहुंचते हैं। मंदिर की स्थापना अंग्रेज शासन काल से जुड़ी हुई है। कहा जाता है मंदिर एक छोटी सी झोपड़ी के रूप में बनाया गया था, जिसे भक्तों द्वारा दिए गए दान से एक विस्तृत मंदिर परिसर के रूप में स्थापित करने में मदद मिली। जी दरअसल माँ गंगा मैय्या मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कथा है।

ऐसा कहा जाता है कि 125 साल पहले अंग्रेज शासन काल में बालोद जिले की जीवनदायिनी तांदुला नदी के नहर का निर्माण चल रहा था। जी हाँ और उस दौरान झलमला ग्राम की आबादी महज 100 के लगभग थी, जहां सोमवार के दिन ही बड़ा बाजार भी लगता था। दूर-दराज से बंजारे पशुओं के विशाल समूह के साथ आया करते थे। वहीं उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी। ऐसे में पानी की कमी को पूरा करने के लिए ‘बैगा तालाब’ की खुदाई कराई गई। वहीं किवदंती अनुसार, एक दिन ग्राम सिवनी का एक मछुआरा मछली पकड़ने के लिए इस तालाब में गया, लेकिन जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई, लेकिन मछुआरा ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में फेंक दिया। इस दौरान कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर मछुआरा जाल लेकर घर चला गया। जाल में बार-बार फंसने के बाद भी मछुआरा ने मूर्ति को साधारण पत्थर समझ कर तालाब में ही फेंक दिया।

वहीं इसके बाद देवी ने उसी गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ। उसके बाद स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केवट और गांव के अन्य प्रमुख को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा, उसके बाद केवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंसी। वहीं उसके बाद प्रतिमा को बाहर निकाला गया, और देवी के आदेशानुसार तिवारी ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। देवी प्रतिमा का जल से निकलने के कारण मां गंगा मैय्या के नाम से जानी जाने लगी।

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