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आखिर क्यों श्राद्ध में कौए, कुत्ते आदि के लिए निकाला जाता है भोग?

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भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या का समय पितरों की पूजा, श्राद्ध एवं तर्पण आदि के लिए बहुत ज्यादा फलदायी माना गया है. जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में यदि कोई व्यक्ति श्रद्धा के साथ अपने परिवार से जुड़े किसी दिवंगत व्यक्ति का श्राद्ध करता है तो उसे सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं. आपको बता दें कि अपने पूर्वज या फिर कहें पितरों की याद में किए जाने वाले श्राद्ध में किसी ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले पंचबलि या फिर कहें पंच ग्रास का बहुत ज्यादा महत्व होता है. अब आज हम आपको बताते हैं आखिर कौए, कुत्ते, चीटीं, गाय आदि के लिए आखिर क्यों निकाला जाता है ग्रास और इसका हमारे पितरों से क्या संबंध होता है.

गोबलि- कहा जाता है श्राद्ध में की जाने वाली पंचबलि एक हिस्सा उस गाय के लिए निकालाा जाता है जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत ही पूजनीय माना गया है. ऐसी मान्यता है कि गाय में 33 कोटि देवता निवास करते हैं, जिसकी पूजा एवं सेवा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं. जी हाँ और यही कारण है कि पितृपक्ष में गाय के लिए विशेष रूप से ग्रास या फिर कहें भोग निकाला जाता है.

श्वानबलि- पितृपक्ष में श्राद्ध करते समय गाय और कौए की तरह कुत्ते के लिए भी विशेष रूप से भोग लगाया जाता है. जी हाँ और कुत्ते को यम का पशु माना गया है. ऐसे में यह मान्यता है कि पितृपक्ष में कुत्ते को ग्रास खिलाने पर जीवन से जुड़े सभी प्रकार के भय दूर होते हैं और व्यक्ति पर पितरों का पूरा आशीर्वाद बरसता है.

काकबलि

सनातन परंपरा में जिस कौऐ को यमराज का प्रतीक माना जाता है और जिससे तमाम प्रकार के शुभ-अशुभ संकेत जुड़े हुए होते हैं, उसका पितृ पक्ष में बहुत महत्व होता है. जी दरअसल पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध में कौए के लिए विशेष रूप से ग्रास निकाला जाता है, जिसे काकबलि कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि यदि पितृपक्ष में कौआ आपका दिया हुआ ग्रास खा ले तो व्यक्ति पर पितर संतुष्ट होकर अपना खूब आशीर्वाद बरसाते हैं.

देवादिबलि

पितरों की पूजा में श्राद्ध करते समय एक हिस्सा देवताओं के लिए भी निकाला जाता है, जिसे देवादिबलि कहते हैं. कहा जाता है यह भाग अग्नि के माध्यम से देवताओं तक पहुंचता है. ऐसे में श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को पूर्व दिशा की ओर मुंंह करके गाय के गोबर से बने उपलों को जलाकर उसमें घी के साथ 5 निवाले अग्नि देवता के माध्यम से देवताओं तक पहुंचाना चाहिए.

पिपीलिका बलि

पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरा भोग लगाते समय पांचवा हिस्सा चींटी आदि अन्य कीड़े-मकोड़ाें को दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने पर पितरों को तृप्ति मिलती है और वे प्रसन्न होकर वंश की वृद्धि करते हैं.

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