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यहाँ रंगों से नहीं बल्कि राख से खेलते हैं होली, बड़ी अनोखी है परम्परा

holi 2022 in rangbhari ekadashi celebration in varanasi

आप सभी जानते ही होंगे भारत में होली का त्‍योहार बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। जी हाँ, हालाँकि हर जगह पर अलग-अलग तरह से होली खेली जाती है। जी हाँ और इसमें कुछ खास जगहों की होली तो विश्‍वप्रसिद्ध है। इस लिस्ट में कृष्ण नगरी कही जाने वाली मथुरा, वृंदावन, बरसाने की होली देखने के लिए दुनियाभर के लोग आते हैं। वहीं इन शहरों में होली से काफी दिन पहले ही होली का उत्‍सव शुरू हो जाता है। इसी लिस्ट में काशी भी शामिल है जहाँ होली का उत्‍सव कुछ दिन पहले रंगभरी एकादशी से ही शुरू हो जाता है। 

जी हाँ और यहाँ इस दिन शिव भक्‍त भोलेनाथ के साथ होली खेलते हैं, लेकिन यह होली बहुत अलग होती है। आप सभी को बता दें कि यहां रंगों से नहीं बल्कि चिता की राख से होली खेली जाती है। यहाँ मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाशमशान हरिश्चंद्र घाट पर चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं। जी दरअसल कहते हैं कि यहां कभी चिता की आग ठंडी नहीं होती है। जी हाँ और पूरे साल यहां गम में डूबे लोग अपने प्रियजनों को अंतिम विदाई देने आते हैं हालाँकि साल में एकमात्र होली का दिन ऐसा होता है जब यहां खुशियां बिखरती हैं। आप सभी को बता दें कि रंगभरी एकादशी के दिन इस महाश्‍मशान घाट पर चिता की राख से होली खेली जाती है। आप सभी को हम यह भी बता दें कि इस साल भी 14 मार्च को वाराणसी में रंगभरी एकादशी के दिन श्मशान घाट पर रंगों के साथ चिता की भस्म से होली खेली गई। जी हाँ और इस दौरान डमरू, घंटे, घड़ियाल और मृदंग, साउंड सिस्टम से निकलता संगीत जोरों पर रहा। कहा जाता है कि चिता की राख से होली खेलने की यह परंपरा करीब 350 साल पुरानी है। 

जी दरअसल इसके पीछे एक कहानी है जो यह है कि, 'भगवान विश्‍वनाथ विवाह के बाद मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे थे। तब उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी। लेकिन वे श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरियों के साथ होली नहीं खेल पाए थे। तब उन्‍होंने रंगभरी एकादशी के दिन उनके साथ चिता की भस्‍म से होली खेली थी।' ऐसे में आज भी यहां यह परंपरा जारी है।

आखिर क्यों मनाया जाता है होली का पर्व

 

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