इन्दौरी तड़का : यहाँ पे बस बेज्जती की जाती है और कुछ ना
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Indori Tadka : बड़े यहाँ पे सबसे जादा बेज्जती की जाती है। यहाँ पे हर कोई बेज्जती करता है और वो बी ऐसी बेज्जती की क्या बोलो। फिर वो छोटा हो या बड़ा सब बेज्जती पे उतारू रेते है। बच्चो की हालत तो ये होती है की घर में माँ बेज्जती कर देती है, स्कूल में मेडम बेज्जती कर देती है, दोस्तों के सामने बहन या भाई बेज्जती कर देते है और बाकी बची कूची जो इज्जत रे जाती है उसे बच्चे खुद ही अपने बेस्ट फ्रेंड के मुँह से नीलाम करवा देते है। और बात कर लें बड़ो की तो उनकी तो ऐसा लगता है कोई इज्जत है ही ना। घर पे पत्नी बेज्जती कर देती है, ऑफिस में बॉस, और रास्ते में तो इज्जत होती ही ना है, बाकी बची कूची जो रेती है वो शाम को घर आते ही पड़ोसी कर देते है। भिया यहाँ पे सबसे जादा बेज्जती अगर कोई करता हैतो वो है माँ क्योंकि वो कबि बी हमारी बेज्जती करना नी छोड़ती। बचपन में कोई शरारत ना करो तो बी वो यहीं कहती है " जरूर तूने ही करा होगा" थोड़े बड़े हो जाओ और स्कूल से लेट आ जाओ तो " जब देखो तब घूमती ही रहती हो कोई काम करलो" बड़े हो जाओ ऑफिस से कोई घर पे आ जाए तब " इतनी बेकार है ना ये की घर का एक ग्लास इधर से उठा के उधर नी रखती है" मतलब सब जगे बस बेज्जती।
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अब तो मेको बी ऐसा लगता है की मेरी तो कोई इज्जत बची ही ना है ये इंदौर की माँ ऐसी ही क्यों होती है महाकाल। कोई समझा बी नई सकता माँ को क्योंकि इनको समझाया तो समझो तुम्हारी तरह उड़ती हुई चप्पल आ जानी है। बेज्जती सेह लो लेकिन चप्पल ना सेहवाएगी।