आखिर क्यों किया जाता है मंत्र का उच्चारण
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच।।
शास्त्रकार ने कहा है
'मननात् त्रायते इति मंत्र:' इसका मतलब है कि मनन करने पर जो त्राण दे या रक्षा करे वही मंत्र है. जी हाँ, वहीं धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति को मंत्र कहा जाता हैं और तंत्रानुसार देवता के सूक्ष्म शरीर को या इष्टदेव की कृपा को मंत्र कहते हैं. ऐसे में दिव्य-शक्तियों की कृपा को प्राप्त करने में उपयोगी शब्द शक्ति को 'मंत्र' कहा जाता है और अदृश्य गुप्त शक्ति को जागृत करके अपने अनुकूल बनाने वाली विधा को मंत्र कहा जाता है.
इस तरह गुप्त शक्ति को विकसित करने वाली विधा को मंत्र कहा जाता है और आज से हजारों वर्ष पूर्व मंत्र शक्ति के रहस्य को प्राचीनकाल में वैदिक ऋषियों ने ढूंढ निकाला था. कहा जाता है उन्होंने उनकी शक्तियों को जानकर ही वेद मंत्रों की रचना की और वैदिक ऋषियों ने ब्रह्मांड की सूक्ष्म से सूक्ष्म और विराट से विराट ध्वनियों को सुना और समझा. कहते हैं इसे सुनकर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की थी और उन्होंने जिन मंत्रों का उच्चारण किया, उन मंत्रों को बाद में संस्कृत की लिपि मिली और इस तरह संपूर्ण संस्कृत भाषा ही मंत्र बन गई. कहते हैं और ज्योतिषों के अनुसार संस्कृत की वर्णमाला का निर्माण बहुत ही सूक्ष्म ध्वनियों को सुनकर करते हैं और मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है. इन सभी में मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है.
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