इन्दौरी तड़का : भिया अब तो सूबे सूबे चाय के लिए बी भटकना पड़ रिया है
Indori Tadka : हाँ बड़े दूध की तो ऐसी लगी पड़ी है की क्या बताओ हर जगे पे साला लाइन लगाना पड़ रिया है। कहीं पे भाव 50 रुपए है तो कहीं पे 25। मतलब दूध के बी कोई भाव बढ़ाता है क्या ?? भाव तो इंदौर में छोरियों के बढ़ते है वो बी आए दिन वो ऐसे भाव खाती है जैसे उनकी फेवरेट डिश ही यई हो। लेकिन ये हड़ताल और अनशन ने तो दूध से लेके सब्जी तक सबके भाव ही बढ़वा दिए। क्या खाओ क्या पीओ कुछ सम्पट ही नी पड़ रिया है। लपक के चिढ़ जैसी छूट री है सब पे। भिया अनशन करो, मारा पीटी करों सब करो लेकिन हम गरीबों का बी तो कुछ सोचो हम तो हमारी प्यारी चाय पे ही ज़िंदा है ना। एक वई तो हमारा सहारा है उसे बी छीनने पे तुले हो।
सूबे सूबे ऐसे रोने मचते है चाय के जैसे कोई सटक गया हो ऊपर। बड़े कहीं पे बी चले जाओ चाय नी मिलनी है मतलब नी मिलनी है। और सब्जी वई रोज सेव की खाओ या घर में आलू पड़े होएंगे उसकी। यार बावा ऐसे ही ज़िंदगी झंडवा हुई जा री है ऊपर से लोग और दिमाग की लगा रे है। साला ना चैन से जीने देते है, खाने और घरवाले तो चैन से सोने बी नी देते है। क्या मालम क्या क्या हो रिया है इंदौर में। कसम से मन करता है ये सब छोड़ छाड़ के भग जाओ सन्यासी बनने ऐसी लगी पड़ी है ज़िंदगी की।
इन्दौरी तड़का : बड़े सब कुछ छोड़ दे पर इन्दौरी कल का मैच नी छोड़ेंगे
इन्दौरी तड़का : बड़े आज तो जम के धमाल मचेगा मैच में
इन्दौरी तड़का : भिया सम्पट ही नी पड़ रिया है गर्मी है की बरसात