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इस मंदिर में है महिषासुर का रक्त, देखते ही लोग हो जाते हैं अंधे

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दुनियाभर में कई ऐसे मंदिर हैं जो बहुत अजीब हैं और उनसे जुड़े भी कई अजीब किस्से हैं. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ महिषासुर का रक्त है और जो उसे देखता है वह अँधा हो जाता है. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं लाहौल घाटी के उदयपुर में प्रसिद्ध मृकुला देवी मंदिर की, जहाँ का इतिहास द्वापर युग के दौरान पांडवों के वनवास काल से जुड़ा हुआ है. कहते हैं समुद्रतल से 2623 मीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर अपनी अद्भुत शैली और लकड़ी पर नक्काशी के लिए फेमस है और यहां मां काली की महिषासुर मर्दिनी के आठ भुजाओं वाले रूप में पूजा करते हैं. यह एक ऐसा मंदिर है जो कश्मीरी कन्नौज शैली में बनाया गया है और कहा जाता है, ''महाबली भीम एक दिन एक विशालकाय पेड़ को यहां लाए और उन्होंने देवता के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा से यहां मंदिर के निर्माण के लिए कहा और विश्वकर्मा ने एक दिन में इस मंदिर का निर्माण किया.'' 

आपको बता दें कि यहाँ साल में एक बार फागली उत्सव होता है और इस उत्सव की पूर्व संध्या पर मां मृकुला देवी मंदिर के पुजारी खप्पर की पूजा-अर्चना की रस्म अदायगी अकेले करते हैं. कहा जाता है उसमे खप्पर को बाहर निकाला जाता है लेकिन कोई देखता नहीं है क्योंकि जो उसे देख लेता है वह अंधा हो जाता है.

जी हाँ, इस मंदिर के पुजारी दुर्गा दास कहते हैं कि, ''बुजुर्गों की बात पर यकीन किया जाए तो 1905-06 में इस खप्पर को देखने वाले चार लोगों की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई थी.'' आपको यह भी बता दें कि मंदिर प्रांगण में एक क्विंटल करीब पक्का ढाई मन वजन का एक पत्थर है जिसे उठाना तो दूर हिलाने में भी पसीने छूट जाते हैं लेकिन कहा जाता है सच्चे मन से मां के जयकारों के साथ पांच या सात लोग एक मध्यम उंगली से इस पत्थर को बड़ी सुगमता से हिला या उठाने में कामयाब हो सकते हैं.

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