इस वजह से टेढ़ी है शनिदेव की दृष्टि
आज शनि जयंती है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर क्यों हैं शनिदेव की दृष्टि टेढ़ी.
जी दरअसल ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार युवावस्था में शनि के पिता सूर्यदेव ने उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से करवा दिया. कहा जाता है वह सती-साध्वी नारी सतत तपस्या में रत रहने वाली एवं परम तेजस्विनी थी और एक दिन वह ऋतु स्नान कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, पर शनिदेव तो भगवान श्री कृष्ण के ध्यान में लीन थे, उन्हें ब्राह्य ज्ञान बिल्कुल नहीं था. उनकी पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई. वहीं अपना ऋतुकाल निष्फल जानकर उन्होंने क्रुद्ध होकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से तुम जिसकी ओर दृष्टि करोगे, उसका अंमगल हो जाएगा. ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया परन्तु अब तो वह श्राप से मुक्त करने में असमर्थ थी,अतःपश्चाताप करने लगीं. उसी दौरान से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि किसी का अनिष्ट हो.
केवल इतना ही नहीं ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार, गणेशजी के सिर का धड़ से अलग होने का कारण शनि को बताया गया है. वहीं इस प्रसंग के अनुसार माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए ‘पुण्यक’ नामक व्रत किया था और उनको इस व्रत के प्रभाव से पुत्र गणेश की प्राप्ति हुई. कहा जाता है पूरा देवलोक भगवान शिव और माता पार्वती को बधाई देने और बालक को आशीर्वाद देने शिवलोक आ गया. अंत में सभी देवतागण बालक गणेश से मिलकर और आशीर्वाद देकर जाने लगे. वहीं जब शनिदेव ने बालक गणेश को न तो देखा और न ही उनके पास गए और पार्वती ने इस पर शनिदेव को टोका.
वहीं शनिदेव ने अपने श्राप की बात माँ दुर्गा को बताई और देवी पार्वती ने शनैश्चर से कहा-'तुम मेरी और मेरे बालक की ओर देखो.धर्मात्मा शनिदेव ने धर्म को साक्षी मानकर बालक को तो देखने का विचार किया पर बालक की माता को नहीं . उन्होंने अपने बाएं नेत्र के कोने से शिशु के मुख की ओर निहारा. शनि की दृष्टि पड़ते ही शिशु का मस्तक धड़ से अलग हो गया. माता पार्वती अपने बालक की यह दशा देख मूर्छित हो गईं. उसके बाद माता पार्वती को इस आघात से बाहर निकालने के मकसद से श्री हरि अपने वाहन गरुड़ पर सवार होकर बालक के लिए सिर की खोज में निकले और अपने सुदर्शन चक्र से एक हाथी का सिर काट कर कैलास पर आ पहुंचे. कहा जाता है पार्वती के पास जाकर भगवान विष्णु ने हाथी के मस्तक को सुंदर बनाकर बालक के धड़ से जोड़ दिया और फिर ब्रह्मस्वरूप भगवान ने ब्रह्मज्ञान से हुंकारोच्चारण के साथ बालक को प्राणदान दिया और पार्वती को सचेत करके शिशु को उनकी गोद में रखकर आशीर्वाद प्रदान किया. वहीं हाथी का सिर धारण करने के कारण गणेश को गजानन भी कहा जाता है.