इन्दौरी तड़का : बड़े यहां की लड़कियां कब सुधरेगी
हाँ भिया पता नी वो दिन कब आएगा जब इंदौर की छोरियां सुधरेंगी। हर दिन कोई ना कोई नया बवाल होता ही है इनका। बिन मैटर के उलझना तो इनको इत्ता अच्छा लगता है की क्या बोलो। हर दिन बिन मैटर उलझती रेती है। पता नी क्या मजा आता है इनको हर दिन बस लड़ने को के दो लड़ने में तो इनकी जबान ऐसी चलती है जैसे कैंची और वहीँ अगर इनको इनके पापा के सामने खड़ा कर दो तो एक बी आवाज नी निकलेगी।
छोरियां सबके सामने भेंकर वाली कचर कचर लगी रेती है बस अपने पप्पा के सामने इनका मुँह नी खुलता है। भिया कसम से यहाँ की छोरियां कोई कीमत पे नी सुधरने वाली हर बात पे साला गाली गाली। तेरी माँ की तेरी भेन की बस दिनभर इनके मुँह से यई निकलता है।
बड़े इंदौर में भोत कम ऐसी छोरियां तुमको मिलेंगी जो गाली नई बकती हो और ना ही पटर पटर मुँह चलाती हो। बाकी बात करूं तो सब की सब ऐसी ही है सबकी जुबान नाग से बी लम्बी है और चलती है तो समझो सामने वाले की आज मौत आनी पक्की है। सब की सब ऐसी ही है यहाँ हाइट, वेट से इनको कबि नापने की जरूरत नी है सबकी जुबान एक नंबर है और एक जैसी ही है सबकी जुबान पे बस गाली और बक-बक रेती है। कबि कबि तो लगता है की इंदौर की छोरियों की जिससे शादी होती होएगी उसकी कैसी बजती होगी सब जगे से।
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