इन्दौरी तड़का : बड़े ! ऑफिस जा जा के जिंदगी झंड हो गई है
इन्दौरी तड़का : और बड़े मजे में। हाँ भिया यहाँ पे सबी मजे में ही रेते है बस उनको छोड़के जो बेचारे ऑफिस जा जा के पक गए होते है। यहाँ पे भिया आधे से जादा लोग ऐसे ही है जिनका दिमाग ऑफिस जा जाके भण्ड हो रखा है। हो भिया बस किसी ऑफिस जाने वाले के सामने ऑफिस की बात निकाल दो साला इत्ता खीझेगा की क्या बतऊ। भिया यहाँ पे लोग ऑफिस जा जाके वेले हो गए है। बड़े यहाँ पे आधे लोगो की ज़िन्दगी तो साला ऑफिस में ही जा जाके निकल री है। रोज रोज साल एक ही काम वई ऑफिस और फिर ऑफिस से घर मतलब और कुछ बचा ही नी है ज़िन्दगी में साली झंडी हो गई है। यार बस इत्ता ही नी रोज ऑफिस में बी वई पुरानी पुरानी शक्ल देखनी पड़ती है। साले ऑफिस के लोग बी नी बदलते की कुछ अच्छा मिले वई बॉस।
रोज की मगजमारी। रोज वई काम। भिया यहाँ के ऑफिस की तो बात ही निराली है यहाँ पे बॉस को बस काम कहिए पूरा बाकी तुमको सैलरी टाइम पे नी मिलेगी लेकिन काम पूरा होना। यहाँ के लोगो को ऑफिस एक नाम से ही अब चिढ होती है। ऑफिस की बात करें तो यहाँ पे ऑफिस में बी कोई ढंग के लोग नी मिलते सब वई दिमाग खाऊ लोग। कोई आके अपनी बढाई कर रिया है तो कोई आके किसी की बुराई। कोई ऐसा लप्पास निकलेगा की दिनभर मस्ती के अलावा उसको कुछ सूझता ही नी है और कोई ऐसा रेगा की उसको बॉस की चमचागिरी करने से ही फुरसत नी मिलती। भिया सच बतऊ यहाँ के लोग सच्ची में भोत भेँकर तरीके से पक गए है ऑफिस जा जा के।
इन्दौरी तड़का : नी भिया होली वाले दिन तुम बच गए थे आज नी बच पाओगे
इन्दौरी तड़का : भिया भोत हो गई होली और रंगपंचमी
इन्दौरी तड़का: भिया अब तो जो भी जा रिया हैं छोड़कर