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राजा विक्रमादित्य ने 11 बार काटा था माता रानी के सामने अपना शीश, जानिए क्या होता था फिर?

Harsiddhi Temple Ujjain history

मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि माता को मांगल-चाण्डिकी के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं यहाँ माता हरसिद्धि की साधना करने से दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। केवल यही नहीं बल्कि जो राजा विक्रमादित्य अपनी बुद्धि, पराक्रम और उदारता के लिए जाने जाते थे वह इन्हीं देवी के उपासक थे। जी हाँ और इस वजह से उन्हे भी हर प्रकार की दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त हो गईं थीं। ऐसा कहते है कि राजा विक्रमादित्य ने 11 बार अपने शीश को काटकर मां के चरणों में समर्पित कर दिया था, हालाँकि हर बार देवी मां उन्हें जीवित कर देती थीं।

 केवल यही नहीं बल्कि इस स्थान की इन्हीं मान्यताओं के आधार पर कुछ गुप्त साधक यहां विशेष रूप से नवरात्र में गुप्त साधना करने आते हैं। इसी के साथ तंत्र साधकों के लिए भी यह स्थान विशेष महत्व रखता है। कहा जाता है उज्जैन के आध्यात्मिक और पौराणिक इतिहास की कथाओं में इस बात का विशेष वर्णन भी मिलता है।

आपको बता दें कि माता के 51 शक्तिपीठों मे यह एक ऐसा चमत्कारी शक्तिपीठ है, जहां की मान्यता है कि यहां स्तंभ पर दीपक लगाने से हर मन्नत पूरी होती है। जी हाँ और कहते हैं इस मंदिर में दीप स्तंभो की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने करवाई थी। वहीं दीप स्तंभ 2 हजार साल से अधिक पुराने बताए जाते हैं क्योंकि राजा विक्रमादित्य का इतिहास भी करीब 2 हजार साल पुराना है। बताया जाता है यह स्तंभ लगभग 51 फीट ऊंचे हैं, दोनों दीप स्तंभो में मिलाकर लगभग 1 हजार 11 दीपक हैं। जी हाँ और इस स्तंभों पर दीप जलाना बहुत ही कठिन होता है।

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