इंदौरी तड़का : बड़े इंदौर के लोगो की ज़िंदगी में दिक्कत नी बल्कि दिक्कत में ज़िंदगी है
हाँ भिया यहाँ पे ऐसा ही मामला है। यहाँ पे कोई के बी ज़िंदगी में दिक्कत नी है बल्कि दिक्कत में ज़िंदगी फंसी हुई है वो बी ऐसी की क्या बोलो। भिया यहाँ पे सबका हाल यई है दिक्क्त में ही ज़िंदगी निकल री है ऑफिस वालों की अपनी दिक्क्त, घरवालों की अपनी, स्कूल वालों की अपनी, मतलब सबकी अपनी अपनी अलग अलग ही दिक्कत है और वो बी ऐसी ऐसी की सुलझने वाली है ही ना। बड़े यहाँ पे हर एक के अलग ही मेटर हो रिए है और तो और कोई के सुलझने के नाम बी नी ले रिए है।
भिया वैसे बी यहाँ पे सब बड़े वाले है भले ही खुद की दिक्क्त सुलझे ना लेकिन दूसरे की तो सुलझाने में नंबर एक पे रेते है। मतलब दूसरे की दिक्क्त को तो सुलझाने का सारा ठेका लेके रखते है। कोई बी यहाँ पे अगर किसी के पास अपनी दिक्क्त लेके पोच जाए ना तो उसे सुलझाने में बंदे जी जान लगा देंगे लेकिन अगर खुद की कोई दिक्क्त है तो वो इनसे सुलझने वाली नी है फिर तो बस इनको गालियां ही याद आती है। इसकी भेन की, इसकी माँ की इसकी वो इसकी वो अब बड़े तू तेरा निपट बाकी सब अपना निपट ही लेंगे। बावा यहाँ पे दूसरे की दिक्कत का सबके पास निपटारा होता है लेकिन खुद की दिक्क्त की माँ......
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