आखिर क्यों कहा जाता है श्री कृष्णा को रणछोड़
आप सभी ने भगवान श्रीकृष्ण के चमत्कार और लीलाओं के बारे में सुना ही होगा है. इसी के साथ आप जानते ही होंगे कि श्री कृष्णा को कई नामों से जाना जाता है और इन्ही में शामिल है रणछोड़. बहुत कम लोग जानते हैं कि आखिर क्यों श्री कृष्णा को कहा जाता है रणछोड़, तो आइए हम आपको बताते हैं.
आखिर क्यों कहा जाता है श्री कृष्णा को रणछोड़
जी दरअसल एक बार मगधराज जरासंध ने भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा था, लेकिन वह सिर्फ अकेले नहीं बल्कि उसने श्रीकृष्ण के खिलाफ युद्ध के लिए यवन देश के राजा कालयवन को भी अपने साथ मिला लिया था. दरअसल, कालयवन को भगवान शंकर से ये वरदान मिला था कि न तो कोई चंद्रवंशी और न ही कोई सूर्यवंशी उसको युद्ध में हरा सकता है. उसे न तो कोई हथियार मार सकता है और न ही कोई अपने बल से हरा सकता है.
भगवान शंकर से मिले वरदान की वजह से कालयवन खुद को अमर और अजेय समझने लगा था. उस लगने लगा था कि कोई भी उसे युद्ध में हरा नहीं सकता है और न ही मार सकता है. जरासंध के कहने पर कालयवन ने अपनी सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण कर दिया. अब चूंकि श्रीकृष्ण जानते थे कि कालयवन को वो अपने बल से मार नहीं सकते हैं और न ही उनका सुदर्शन चक्र उसका कुछ बिगाड़ सकता है. इसलिए वो रणभूमि छोड़ कर भाग गए और एक अंधेरी गुफा में पहुंच गए. कहते हैं श्रीकृष्ण जिस गुफा में जाकर छुपे हुए थे, उसमें पहले से ही इक्ष्वाकु नरेश मांधाता के पुत्र और दक्षिण कोसल के राजा मुचकुंद गहरी नींद में सोए हुए थे. दरअसल, उन्होंने असुरों से युद्ध कर देवताओं को जीत दिलाई थी.
लगातार कई दिनों तक युद्ध करने की वजह से वह थक गए थे, इसलिए भगवान इंद्र ने उनसे सोने का आग्रह किया और उन्हें एक वरदान भी दिया, जिसके मुताबिक जो कोई भी उन्हें नींद से जगाएगा, वह जलकर भस्म हो जाएगा. ऐसा भी कहा जाता है राजा मुचकुंद को मिले वरदान की बात श्रीकृष्ण को पता थी, इसलिए वो कालयवन को अपने पीछे-पीछे उस गुफा तक ले आए, जहां राजा मुचकुंद सोए हुए थे. श्रीकृष्ण ने कालयवन को भ्रमित करने के लिए अपना पीतांबर राजा मुचकुंद के ऊपर डाल दिया. राजा मुचकुंद को देख कर कालयवन को लगा कि वह श्रीकृष्ण ही हैं और उससे डर कर अंधेरी गुफा में छुप कर सो गए हैं. इसलिए उसने श्रीकृष्ण समझ कर राजा मुचकुंद को ही नींद से उठा दिया. अब राजा मुचकुंद जैसे ही नींद से उठे, कालयवन वहीं जल कर भस्म हो गया. असल में यह भगवान श्रीकृष्ण की ही एक लीला थी. उन्होंने महाभारत के युद्ध में गीता का उपदेश देते हुए कहा भी था कि सृष्टि में जो कुछ भी होता है, उन्ही की इच्छा से होता है, तो जाहिर है कालयवन का अंत भी उन्ही की इच्छा से हुआ था.
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